इक मैं ही नहीं उन पर क़ुर्बान ज़माना है || IK Main Hi Nhi Un Par Qurban Zamana Hai
इक मैं ही नहीं उन पर क़ुर्बान ज़माना हैजो रब्ब-ए-दो-आलम का महबूब-ए-यगाना है कल जिस ने हमें पुल से ख़ुद पार लगाना हैज़ोहरा का वो बाबा है सिबतैन का नाना है उस हाशमी दूल्हा पर कौनैन को मैं वारूँजो हुस्न-ओ-शमाइल में यकता-ए-ज़माना है इज़्ज़त से न मर जाएँ क्यों नाम-ए-मोहम्मद परहम ने किसी दिन यूँ […]